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जी गए पूरा बरस बस लिये खाली हाथ  
और अच्छे दिन हमारे  
												घर नहीं आये।  
 
रोज उगता रहा सूरज  
मगर ज्यों का त्यों अँधेरा 
धूप की बस बाट जोहे  
आज भी बैठा सबेरा 
 
धुंध, कुहरे ने नहीं छोड़ा अभी तक साथ  
और हम यों ही खड़े हैं  
												रोज मुँह बाये।  
 
चलो चलते हैं समय के  
पास तो होंगे उजाले  
करें हम मजबूर शायद  
धूप मुट्ठी भर उछाले 
 
हाथ जोड़ें उन्हें कब तक कहें दीनानाथ  
सूर्य ने तो ओढ़ रक्खे  
												दंभ के साये 
 
- डॉ. प्रदीप शुक्ल | 
                      
              
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नए वर्ष के नए तराने  
रूठों को भी चलो मना लें  
संबंधों के राजमहल में  
हर रिश्ते को गले लगा लें  
 
परिभाषा बदलें जीवन की 
पढ़ लें सब भाषाएँ मन की  
दुखद समय को भूलें सब ही  
नव-आशा का हार बना लें 
नए वर्ष के नए तराने  
रूठों को भी चलो मना लें  
हर रिश्ते को गले लगा लें  
 
अहं गले, नेह फैले बस  
अब न उठे काँधे पर तरकश  
सिंदूरी प्रात:की बेला  
सजी हुई है, प्रेम सजा लें  
रूठों को भी चलो मना लें 
नए वर्ष के नए तराने  
रूठों को भी चलो मना लें  
हर रिश्ते को गले लगा लें  
 
- प्रणव भारती  |