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अनुभूति में चंद्रभान भारद्वाज की रचनाएँ -

नई रचनाएँ-
नहीं मिलते
मैं एक सागर हो गया
राह दिखती है न दिखता है सहारा कोई
हर किरदार की अपनी जगह

अंजुमन में-
अधर में हैं हज़ारों प्रश्न
आदमी की सिर्फ इतनी
उतर कर चाँद
कदम भटके
कागज पर भाईचारे
कोई नहीं दिखता
खोट देखते हैं
गगन का क्या करें
जब कहीं दिलबर नहीं होता
ज़िन्दगी बाँट लेंगे
गहन गंभीर
तालाब में दादुर
दुखों की भीड़ में
नाज है तो है
नदी नाव जैसा
पीर अपनी लिखी
फँसा आदमी
मान बैठे है
रात दिन डरती हुई-सी

रूप को शृंगार
सत्य की ख़ातिर
सिमट कर आज बाहों में

संकलन में- होली पर

  दुखों की भीड़ में

दुखों की भीड़ में थोड़ी खुशी थोड़ी नहीं होती,
प्रणय की चार दिन की ज़िन्दगी थोड़ी नहीं होती।

घिरें काली घटाऐं और बिजली कौंधती हो तो,
अँधेरी रात में यह रोशनी थोड़ी नहीं होती।

बरस कर स्वाति में इक सीप को मोती बना दे जो,
तड़पती प्यास को वह बूँद भी थोड़ी नहीं होती।

समय की बाढ़ में सारे सहारे डूब जायें जब,
तो तिनकों की बनी इक नाव भी थोड़ी नहीं होती।

विरह के तप्त अंगारे पचाने के लिये केवल,
मिलन की एक मुट्ठी चाँदनी थोड़ी नहीं होती।

निगाहों से मिलीं हों ज़िन्दगी भर नफ़रतें जिसको,
उसे संवेदना की इक घड़ी थोड़ी नहीं होती।

भरीं हों आँसुओं से रोज़ 'भारद्वाज' जो आँखें,
उन्हीं की कोर काजल से अँजी थोड़ी नहीं होती।

१४ सितंबर २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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