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अनुभूति में चंद्रभान भारद्वाज की रचनाएँ -

नई रचनाएँ-
नहीं मिलते
मैं एक सागर हो गया
राह दिखती है न दिखता है सहारा कोई
हर किरदार की अपनी जगह

अंजुमन में-
अधर में हैं हज़ारों प्रश्न
आदमी की सिर्फ इतनी
उतर कर चाँद
कदम भटके
कागज पर भाईचारे
कोई नहीं दिखता
खोट देखते हैं
गगन का क्या करें
जब कहीं दिलबर नहीं होता
ज़िन्दगी बाँट लेंगे
गहन गंभीर
तालाब में दादुर
दुखों की भीड़ में
नाज है तो है
नदी नाव जैसा
पीर अपनी लिखी
फँसा आदमी
मान बैठे है
रात दिन डरती हुई-सी

रूप को शृंगार
सत्य की ख़ातिर
सिमट कर आज बाहों में

संकलन में- होली पर

  उतर कर चाँद

उतर कर चाँद पूनम का खड़ा डलझील में जैसे
कुँआरा रूप लगता इक दिया कन्दील में जैसे।

ठहर जातीं उलझ कर ये निगाहें इस तरह अक्सर,
फँसा हो छोर आँचल का पटे की कील में जैसे।

सलोना रूप निखरा डूब कर कुछ प्यार में ऐसे,
चमक जाती सफ़ेदी और ज़्यादा नील में जैसे।

अचानक ज़िन्दगी में बढ़ गईं सरगर्मियाँ इतनी,
चला आया बड़ा हाकिम किसी तहसील में जैसे।

हँसे कुछ देर तक हम आँसुओं के दौर से पहले,
उछल कर एक पत्थर डूब जाए झील में जैसे।

उभर आए अचानक हादसे खामोश आँखों में,
लिखे हों साफ़ सब मुद्दे किसी तफसील में जैसे।

हुआ अहसास ऐसा बादलों में चाँद छिपने पर,
अकेलापन बिखर जाए हज़ारों मील में जैसे।

चुराकर वक्त से दो पल पुरानी याद दुहरा ली,
मना ली हो दिवाली एक मुट्ठी खील में जैसे।

बने हैं दृश्य सारे पुतलियों पर इस करीने से,
कि 'भारद्वाज' उतरे कैमरे की रील में जैसे।

२५ मई २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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