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अनुभूति में नीरज गोस्वामी की
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नीम के फूल
पहले मन में तोल
फूल ही फूल

फूल उनके हाथ में जँचते नही
बात सचमुच
भला करता है जो
मान लूँ मै
मिलने का भरोसा
याद आए तो
याद की बरसातों में
याद भी आते क्यों हो
ये राह मुहब्बत की
लोग हसरत से हाथ मलते हैं

वो ही काशी है वो ही मक्का है
साल दर साल

`

दोस्त सब जान से भी

दोस्त सब जान से भी प्यारे हैं
जब तलक दूर वो हमारे हैं

जो भी चाहूं वहीँ से मिलता है
मॉं के हाथों में वो पिटारे हैं

मुस्कुराते हैं हम तो पी के इन्हें
आप कहते हैं अश्क खारे हैं

जीत का मोल पूछिए उनसे
बाजियां जो हमेशा हारे हैं

बाजुओं पर यकीन है जिनको
दूर उनसे कहां किनारे हैं

जिनमें शामिल नहीं हो तुम हमदम
वो नज़ारे भी क्या नज़ारे हैं

जिंदगी नाम उन पलों का है
तेरे सिमरन में जो गुजारे हैं

दिन अकेले ही काट लो ‘नीरज’
रात में चाँद है सितारे हैं

१९ सितंबर २०११


 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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