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जहाँ उम्मीद हो ना मरहम की

जिस पे तेरी नज़र
झूठ को सच बनाइए साहब
तल्खियाँ दिल मे
तेरे आने की ख़बर
तोड़ना इस देश को
दिल का दरवाज़ा
दिल का मेरे
दिल के रिश्ते
नीम के फूल
पहले मन में तोल
फूल ही फूल

फूल उनके हाथ में जँचते नही
बात सचमुच
भला करता है जो
मान लूँ मै
मिलने का भरोसा
याद आए तो
याद की बरसातों में
याद भी आते क्यों हो
ये राह मुहब्बत की
लोग हसरत से हाथ मलते हैं

वो ही काशी है वो ही मक्का है
साल दर साल

`

कतए

खुदक़ुशी जब, ज़मीर करता है
हम तभी, बस्तियाँ जलाते है
कौन डरता, भला खुदा से अब
सब दिखावे को, सर झुकाते हैं

किसको निस्बत रही, ज़माने में
अब कहाँ दिल के, रिश्ते-नाते हैं
यार चलते हुए, जनाज़ों में
आज कल, चुटकुले सुनाते हैं।

घर के कमरे हैं और रसो है
तुमने दुनिया जहाँ समो है
रोते बच्चे-सी ये मुसीबत है
तेरे कंधे पे जा के सोई है

सीधे-साधे लोग थे जो गाँव के
अब ना जाने वो कहाँ पे खो गए
ऐसा लगता बर्गरों के दौर में
बाजरे की यार खिचड़ी हो गए

24 फरवरी 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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