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अनुभूति में नीरज गोस्वामी की
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जिस पे तेरी नज़र
झूठ को सच बनाइए साहब
तल्खियाँ दिल मे
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तोड़ना इस देश को
दिल का दरवाज़ा
दिल का मेरे
दिल के रिश्ते
नीम के फूल
पहले मन में तोल
फूल ही फूल

फूल उनके हाथ में जँचते नही
बात सचमुच
भला करता है जो
मान लूँ मै
मिलने का भरोसा
याद आए तो
याद की बरसातों में
याद भी आते क्यों हो
ये राह मुहब्बत की
लोग हसरत से हाथ मलते हैं

वो ही काशी है वो ही मक्का है
साल दर साल

`

तोड़ना इस देश को

तोड़ना इस देश को, धंधा हुआ
ये सियासी खेल अब गंदा हुआ

सर झुका कर रब वहां से चल दिया
नाम पर उसके जहां दंगा हुआ

तोल कर रिश्ते नफा नुक्सान में
आज तन्हा किस कदर बंदा हुआ

क्या छुपाने को बचा है पास फिर
आदमी जब सोच में नंगा हुआ

मौत से बदतर समझिये जिंदगी
जोश लड़ने का अगर ठंडा हुआ

आँख जब से लड़ गयी है आपसे
नींद से हर शब मिरा पंगा हुआ

दूर सारी मुश्किलें उस की हुईं
पास जिसके आपका कंधा हुआ

जो पराई पीर में "नीरज" बहा
अश्क का कतरा,वही गंगा हुआ



 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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