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जड़ जिसने थी काटी
जहाँ उम्मीद हो ना मरहम की

जिस पे तेरी नज़र
झूठ को सच बनाइए साहब
तल्खियाँ दिल मे
तेरे आने की ख़बर
तोड़ना इस देश को
दिल का दरवाज़ा
दिल का मेरे
दिल के रिश्ते
नीम के फूल
पहले मन में तोल
फूल ही फूल

फूल उनके हाथ में जँचते नही
बात सचमुच
भला करता है जो
मान लूँ मै
मिलने का भरोसा
याद आए तो
याद की बरसातों में
याद भी आते क्यों हो
ये राह मुहब्बत की
लोग हसरत से हाथ मलते हैं

वो ही काशी है वो ही मक्का है
साल दर साल

`

उन्हीं की बात होती है

बुज़ुर्गों का तहेदिल से जो सच में ध्यान रखते हैं
उन्हीं के सर पे आ के हाथ खुद भगवान रखते हैं

मुहब्बत फूल खुशियाँ और दुआएँ पोटली भर के
हम अपने घर में यारों बस यही सामान रखते हैं

यही सच में वजह है तन बदन मेरा महकने की
जलाए दिल में तेरी याद का लोबान रखते हैं

जीवन का सफर होता मुकम्मल उनका ही मानो
जो तीखे दर्द में चेहरे पे इक मुस्कान रखते हैं

मिलेगी ही नहीं थोड़ी जगह दिल में कभी उनके
तिजोरी है भरी जिनकी जो झूठी शान रखते हैं

उन्हीं की बात होती है उन्हीं को पूजती दुनिया
जो भारी भीड़ में अपनी अलग पहचान रखते हैं

गुलाबों से मुहब्बत है जिन्हें उनको खबर कर दो
चुभा करते वो कांटे भी बहुत अरमान रखते हैं

बहारों के ही बस आशिक नहीं ये जान लो 'नीरज'
ख़िज़ाँ के वास्ते भी दिल में हम सम्मान रखते हैं

1 दिसंबर 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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