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जड़ जिसने थी काटी
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जिस पे तेरी नज़र
झूठ को सच बनाइए साहब
तल्खियाँ दिल मे
तेरे आने की ख़बर
तोड़ना इस देश को
दिल का दरवाज़ा
दिल का मेरे
दिल के रिश्ते
नीम के फूल
पहले मन में तोल
फूल ही फूल

फूल उनके हाथ में जँचते नही
बात सचमुच
भला करता है जो
मान लूँ मै
मिलने का भरोसा
याद आए तो
याद की बरसातों में
याद भी आते क्यों हो
ये राह मुहब्बत की
लोग हसरत से हाथ मलते हैं

वो ही काशी है वो ही मक्का है
साल दर साल

` कहानी में

कहानी में हमारी ज़िंदगी का रंग, आ जाता
तुम्हारा नाम मेरे नाम के जब संग, आ जाता

मुहब्बत है कि नफ़रत है, कोई ये हमको समझाए
कभी तू जान दे मुझ पर, कभी तू तंग, आ जाता

जो बोलूँ झूठ तो मिलती मुझे, मालाएँ फूलों की
मगर सच बोलते ही सर पे मेरे संग, आ जाता

अकेले ही चले, दामन पकड़ कर, हम शराफ़त का
नहीं तो, साथ चलने का सभी के ढंग, आ जाता

बुढापा है, थकावट है, मगर पहली-सी चाहत है
तुझे बस याद करते ही गया जो रंग, आ जाता

बिताते तुम, जो 'नीरज' ज़िंदगी, संग इन गुलाबों के
तो काँटों बीच, रहने का, तुम्हें भी ढंग, आ जाता।

16 जुलाई 2006

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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