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                  धूम मचाते 
                  धूम मचाते, ढोल बजाते आ जाते 
                  हैं  
                  मिलने वाले कब मिलने से कतराते हैं  
                  इक-दूजे से पत्थर जैसे टकराते 
                  हैं  
                  दोस्त न जाने कैसे दुश्मन बन जाते हैं 
                  किस-किस के दावे को यारों 
                  झुठलाओगे  
                  लोग सभी अपने को सच्चा बतलाते हैं  
                  क्यों न करूँ तारीफ़ उसकी मैं 
                  सबके आगे  
                  जिसके बोल सदा मन को सुख पहुँचाते हैं  
                  क्यों न खिले वो 'प्राण' गुलाबी 
                  फूलों जैसे  
                  जब भी किसी के हँसते-गाते दिन आते हैं  
                  ९ नवंबर २००९ 
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