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                  अनुभूति में 
                  प्राण शर्मा की रचनाएँ— नई रचनाएँ—अपनी कथा
 कुछ ऐसा प्यारा सा जादू
 खुशी अपनी करे साझी
 नफरत का भूत
 
 गीतों में-
 गीत
 अंजुमन में—आदतें उसकी
 उड़ते हैं हज़ारों आकाश में
 क्यों न महके
 कर के अहसान
 कितनी हैरानी
 गुनगुनी सी धूप
 घर पहुँचने का रास्ता
 चेहरों पर हों
 छिटकती है चाँदनी
 ज़ुल्मों का मारा भी है
 तितलियाँ
 तुमसे दिल में
 धूम मचाते
 नाम उसका
 नित नई नाराज़गी
 पंछी
 बेवजह ही यातना
 मन किसी का दर्द से
 मुझसे मेरे जनाब
 मुँडेरों पर बैठे कौओं
 सुराही
 हम कहाँ उनको याद आते हैं
 हर एक को
 हर किसी के घर का
 संकलन में-
					प्यारी 
					प्यारी होली में |  | तितलियाँ
 होते ही प्रात:काल आ जाती हैं तितलियाँ
 मधुवन में खूब धूम मचाती हैं तितलियाँ
 
 फूलों से खेलती हैं कभी पत्तियों के संग
 कैसा अनोखा खेल दिखाती हैं तितलियाँ
 
 बच्चे , जवान , बूढ़े नहीं थकते देख कर
 किस सादगी से सबको लुभाती हैं तितलियाँ
 
 सुन्दरता की ये देवियाँ परियों से कम नहीं
 मधुवन में स्वर्गलोक रचाती हैं तितलियाँ
 
 उडती हैं किस कमाल से फूलों के आसपास
 दीवाना हर किसीको बनाती हैं तितलियाँ
 
 वैसा कहाँ है जादू परिन्दों में राम जी
 हर ओर जैसा जादू जगाती हैं तितलियाँ
 
 उनके ही दम से " प्राण " हैं फूलों की रौनकें
 फूलों को चार चाँद लगाती हैं तितलियाँ
 २५ जुलाई २०११
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