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अपनी कथा
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खुशी अपनी करे साझी
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गीतों में-
गीत

अंजुमन में—
आदतें उसकी
उड़ते हैं हज़ारों आकाश में
क्यों न महके
कर के अहसान
कितनी हैरानी
गुनगुनी सी धूप
घर पहुँचने का रास्ता

चेहरों पर हों
छिटकती है चाँदनी
ज़ुल्मों का मारा भी है
तितलिया
तुमसे दिल में
धूम मचाते
नाम उसका
नित नई नाराज़गी
पंछी

बेवजह ही यातना
मन किसी का दर्द से
मुझसे मेरे जनाब
मुँडेरों पर बैठे कौओं
सुराही
हम कहाँ उनको याद आते है
हर एक को
हर किसी के घर का

संकलन में- प्यारी प्यारी होली में

 

खुशी अपनी करे साझी

खुशी अपनी करे साझी बता किससे कोई प्यारे
पड़ोसी को जलाती है पड़ोसी की खुशी प्यारे

तेरा मन भी तरसता होगा मुझसे बात करने को
चलो हम भूल जाएँ अब पुरानी दुश्मनी प्यारे

तुम्हारे घर के रोशनदान ही हैं बंद बरसों से
तुम्हारे घर नहीं आती , करे क्या रोशनी प्यारे

सवेरे उठ के जाया कर बगीचे में टहलने को
कि तुझ में भी ज़रा आये कली की ताज़गी प्यारे

कभी कोई शिकायत है , कभी कोई शिकायत है
बनी रहती है अपनों की सदा नाराज़गी प्यारे

कोई चाहे कि ना चाहे ये सब के साथ चलती है
किसी की दुश्मनी प्यारे किसी की दोस्ती प्यारे

कोई शै छिप नहीं सकती निगाओं से कभी उनकी
कि आँखें ढूँढ लेती हैं सुई खोई हुई प्यारे

२६ मार्च २०१२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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