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पंछी

बेवजह ही यातना
मन किसी का दर्द से
मुझसे मेरे जनाब
मुँडेरों पर बैठे कौओं
सुराही
हम कहाँ उनको याद आते है
हर एक को
हर किसी के घर का

संकलन में- प्यारी प्यारी होली में

 

मन किसी का

मन किसी का दर्द से बोझिल न हो
आँसुओं से भीगता काजल न हो

प्यासी धरती के लिए गर जल नहीं
राम जी, ऐसा भी तो बादल न हो

हो भले ही कुछ न कुछ नाराजगी
दोस्तों के बीच में कलकल न हो

ये नहीं मुमकिन कि वो आएँ इधर
और इस दिल में कोई हलचल न हो

जा रहे हो झील की गहराई में
और कहते हो कहीं दलदल न हो

आया है तो बनके जीवन का रहे
ख्वाब की मानिंद सुख ओझल न हो

धूप में राही को छाया चाहिए
पेड़ पर कोई भले ही फल न हो

३१ मई २०१०

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