अनुभूति में संदीप रावत
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
दो कैदी
पिताओं को कन्यादान करते
मैंने दूरबीनों से
यातना
सैलानियों के मौसम
हैंग टिल डेथ
छंदमुक्त में-
कविता
टूटन
पत्ते
मुझे अफ़सोस है
हवा और धुआँ |
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हैंग टिल डेथ
''हैंग टिल डेथ'' सुनते ही
किसी गहरी बेहोशी से जाग उठता है इक आरोपी
अ-देह में, उसे महसूस होती है
देह की सबसे बड़ी पीड़ा
उसकी स्मृति में जन्म लेती है 'माँ'।
'हैंग टिल डेथ' सुनते ही
जश्न से भर जाता है इक देश
सड़कों पर जल उठते हैं चराग
और
अखबारों -रेडियो -टेलीविजनों में
सराही जाती है एक अंधे कानून की दृष्टि ।
आखिर में सिर्फ मिट्टी ही सुनती-समझती है
पीड़िता का दर्द,
किसी 'अभियुक्त' की मनोस्थिति, परिस्थिति
इक कब्र ही करती है
साफ़ साफ़ किसी लाश का बयान दर्ज
मगर न जाने क्यों
इक ज़रा सोच बदलने के लिए,
नए आरंभ के लिए
" हैंग टिल डेथ " सुनने का
इंतज़ार करते हैं हम सभी!
२० जनवरी २०१४ |