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छंदमुक्त में-
कविता
टूटन
पत्ते

मुझे अफ़सोस है
हवा और धुआँ

 

टूटन ...

एक सिसकी सी
उलझ के रह जाए
जब साँसों में
हाँफती धडकनों का
दम-सा घुटने लगे
आँसुओं से कराह उठें आखें
और
दर्द का एहसास भी होने लगे
खिंच के
डोरियों की मानिंद
टूट जाए आवाज़ जब
लफ्ज़ खो जायें...
बिखर जायें माने भी ...
यों भी होता है
कुछ रिश्तों में कभी कभी
कहने - सुनने को कुछ भी
बचता ही नहीं !!

८ अप्रैल २०१३

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