अनुभूति में संदीप रावत
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
दो कैदी
पिताओं को कन्यादान करते
मैंने दूरबीनों से
यातना
सैलानियों के मौसम
हैंग टिल डेथ
छंदमुक्त में-
कविता
टूटन
पत्ते
मुझे अफ़सोस है
हवा और धुआँ |
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मैंने दूरबीनों से
मैंने दूरबीनों से देखा है
दूर सड़कों पर
उड़ रही हैं
ब्रह्म-ज्ञान की पर्चियाँ
एक आदमी
आईने पर
थूक रहा है
सड़कों पर एक ही शीर्षक की
कई कई किताबें हैं
बिखरी पड़ी
जिनपर लिखा है
''आँधी के आम "
सूरज अकेला
काली आँधी से
जूझ रहा है
आबादी का इक बड़ा हिस्सा
नशे में निश्चेत पड़ा है
दूर जंगल में धारी जा रही हैं दरातियाँ
अरबों औरतों ने
सर पर उठा रखे हैं अंगारे
अंगारों से उड़ती चिंगारियों के आलोक में
मैंने दूरबीनों से देखा है
२० जनवरी २०१४ |