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मुझे अफ़सोस है
हवा और धुआँ

 

हवा और धुआँ

हवाएँ ज़िद करती हुई
लिये चलती हैं
जब सूखे पत्तों को अपने साथ ...
दूर कहीं
किसी चूल्हे से उठती हुई
लकीर धुएँ की
आवाज़ लगाती है...
ओ री पवन ...
मुझे भी ले चल यहाँ से
कि ये बेवा हर शब रोती है
अपने संग
कमरे में कैद करके मुझे ...
मेरी आखों में खटकती है वो आखें
कि जिनमे मेरे दिए
आँसू नहीं !!

८ अप्रैल २०१३

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