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अनुभूति में नीरज गोस्वामी की
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जड़ जिसने थी काटी
जहाँ उम्मीद हो ना मरहम की

जिस पे तेरी नज़र
झूठ को सच बनाइए साहब
तल्खियाँ दिल मे
तेरे आने की ख़बर
तोड़ना इस देश को
दिल का दरवाज़ा
दिल का मेरे
दिल के रिश्ते
नीम के फूल
पहले मन में तोल
फूल ही फूल

फूल उनके हाथ में जँचते नही
बात सचमुच
भला करता है जो
मान लूँ मै
मिलने का भरोसा
याद आए तो
याद की बरसातों में
याद भी आते क्यों हो
ये राह मुहब्बत की
लोग हसरत से हाथ मलते हैं

वो ही काशी है वो ही मक्का है
साल दर साल

` जिसपे तेरी नज़र

दोस्तों ने मुझे नवाज़ा है
घाव देखो अभी भी ताज़ा है

जब भी बोलेगा सर कलम होगा
सच का प्यारे यही तक़ाज़ा है

झूठ दूल्हे-सा सजके बैठा है
सच के हाथों में सिर्फ़ बाजा है

अब ये बाज़ार की ज़रूरत है
तोड़ लो हर कली जो ताज़ा है

यों तो हम सब यहाँ भिखारी हैं
जिसपे तेरी नज़र वो राजा है

जिसको सब देख मुसकुराते हैं
वो शराफ़त का ही जनाज़ा है

सिर्फ़ है बात प्यार की 'नीरज'
जब करो तब लगे के ताज़ा है

16 जुलाई 2006

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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