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अनुभूति में नीरज गोस्वामी की
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जड़ जिसने थी काटी
जहाँ उम्मीद हो ना मरहम की

जिस पे तेरी नज़र
झूठ को सच बनाइए साहब
तल्खियाँ दिल मे
तेरे आने की ख़बर
तोड़ना इस देश को
दिल का दरवाज़ा
दिल का मेरे
दिल के रिश्ते
दोस्त सब जान से भी
नीम के फूल
पहले मन में तोल
फिर परिंदा चला
फूल ही फूल

फूल उनके हाथ में जँचते नही
बरसती घटा में
बात सचमुच
भला करता है जो
मान लूँ मै
मिलने का भरोसा
याद आए तो
याद की बरसातों में
याद भी आते क्यों हो
ये राह मुहब्बत की
लोग हसरत से हाथ मलते हैं

वो ही काशी है वो ही मक्का है
साल दर साल

` समझेगा दीवाना

समझेगा दीवाना क्या
बस्ती क्या वीराना क्या

ज़ब्त करो तो बात बने
हर पल ही छलकाना क्या

हार गए तो हार गए
इस में यूँ झल्लाना क्या

दुश्मन को पहचानोगे?
अपनों को पहचाना क्या

दुःख से सुख में लज्ज़त है
बिन दुःख के सुख पाना क्या?

इसका खाली हव्वा है
दुनिया से घबराना क्या

फूलों की सूरत झरिये
पत्तों सा झड़ जाना क्या

किसने कितने घाव दिये
छोड़ो भी, गिनवाना क्या

'नीरज' सुलझाना सीखो
मुद्दों को उलझाना क्या

१ मई २०१३




 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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