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गीत

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तितलिया
तुमसे दिल में
धूम मचाते
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नफरत का भूत
नित नई नाराज़गी
पंछी

फुरसतों के शहर में
बेवजह ही यातना
मन किसी का दर्द से
मुझसे मेरे जनाब
मुँडेरों पर बैठे कौओं
सुराही
हम कहाँ उनको याद आते है
हर एक को
हर किसी के घर का

हर लफ्ज़ कहानी है
हाथीघोड़ा बन कर

संकलन में प्यारी प्यारी होली में

 

एक पैसा खोने पर

एक पैसा खोने पर दुःख सा लगे
सच तो ये है दिल बड़ा छोटा लगे

सुनिए लोगों की हमेशा ही मगर
कीजिये जो आपको अच्छा लगे

संग कायम ही रहे हर एक का
बहताबहता पानी ये प्यारा लगे

मान लेता हूँ कि वो झूठा सही
नींद में सपना मगर सच्चा लगे

काश, ऐसे दिन भी आएँ दोस्तो
घर का जल भी गंगा के जल सा लगे

१७ नवंबर २०१४



 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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