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  गणतंत्र की आत्मा

मैंने आज बाल गोपालों की प्रभात फेरी में,
मूर्तियों पर चढ़ाई जातीं मालायें घनेरी में,
राष्ट्र्रगान से गूँजती, गलियों और देहरी में,
विद्युत-सज्जित भवनों की, छटा चितेरी में,
सुभाष के साहस से, गांधी के तापस से,
नेहरू, तिलक, और आज़ाद के मानस से,
मिली स्वतंत्रता को, हँसते-बिहँसते देखा है,
पर वास्तविक गणतंत्र, आज भी अनदेखा है।

मैंने आज हज़रतगंज के आधुनिक चौराहे पर,
बाबा साहब और गांधी के बीच के दुराहे पर,
फटे पुराने वस्त्रों में, अपनी लज्जा छिपाते हुए,
अर्धनग्न शिशु को, अपने बदन से चिपकाते हुए,
एक नारी को, बाबासाहब की प्रतिमा की छाया से,
फिर महात्मा गांधी की, जर्जर क्षीण काया से,
निर्धन कहाँ और कैसे है स्वतंत्र? पूछते देखा है,
निर्बल हितोन्मुख शासनतंत्र को ढूँढ़ते देखा है।

मैंने, आज एक बिलासपुरी युवती कारे,
प्रजनन-निकट, सात माह की गर्भवती को,
पेट-पालन हेतु, दो मंज़िला मकान पर,
ईटों का ढेर लेकर, चढ़ते ऊँचे मचान पर,
ठेकेदार की, तिरछी निगाहों से छिदते हुए,
बंधुआ मज़दूरों की तरह, जीवन ढोते हुए,
क्या हम भी हैं स्वतंत्र? पूछते देखा है,
अपने से रूठे, गणतंत्र को ढूँढ़ते देखा है।

मैंने आज द्रुतगति से, चलती रेलगाड़ी के,
भीड़ भरे डिब्बे में, एक जनानी सवारी के,
अपमानित होकर, अपनी लज्जा छुपाने पर,
ग्लानिजनित अश्रुओं को, आँख में चुराने पर,
अन्य यात्रियों के, लुकछिप कर मुस्कराने पर,
पुलिस द्वारा, रिपोर्ट लिखने से कतराने पर,
क्या ऐसा होता है जनतंत्र? पूछते देखा है,
देश के सत्तावनवें, गणतंत्र को ढूँढ़ते देखा है?

सभी दल भयमुक्त समाज, बनाने की शपथ खाते हैं,
विकास का आश्वासन देकर, सत्ता में आ जाते हैं,
फिर खुलेआम अपराधियों को, अपने दल में मिलाते हैं,
रैली और जुलूसों को, प्रगति का मापदंड बताते हैं।
एक निरीह को मैंने, जनता की कमाई की लूट देखकर,
अपराधियों और घूसखोरों को, दी गई खुली छूट देखकर,
और कैसा होता है लूटतंत्र? पूछते देखा है,
देश से दिनोंदिन होते अदृश्य गणतंत्र को, ढूँढ़ते देखा है।

फिर भी, कितनी भी लंबी चले शीतलहर,
कुहांसा कैसा भी घना हो, कितना भी ढाये कहर?
छा जाए अंधकार, ग्राम-ग्राम, नगर-नगर,
तब भी प्रत्येक ऋतु का, एक अंत होता है मगर।
मैंने कहीं कुहांसे के पीछे, मुलकते सूरज को,
आत्मविश्वास से परिपूर्ण, भारतवर्ष की मूरत को,
स्वतंत्रता की सुषुप्त चेतना को, जगाते देखा है,
गणतंत्र की गर्भस्थ आत्मा को, जन्माते देखा है।

२४ जून २००६

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