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मैंने कब कहा था तुमसे प्रेयसि मुझको प्यार करो?
मेरे लिए सजो नित नित, नव रूप शृंगार करो?
केशों में वेणी बाँधो, और जूड़े में माला गुँथवाओ,
नयनों में काजल रचकर, माथे पर बिंदिया दमकाओ?

होठों को सरस बनाकर, तुम मुझको मौन निमंत्रण दो?
गालों की रक्तिम आभा से, मेरी प्यास को तृष्णन दो?
मयूर सम ग्रीवा को मोड़ो, कानों के कुंडल चमकाओ,
फिर तिरछे नयनों से देखो, कुटिल मंद मुस्कान दिखाओ?

मुझे देख अनजान बनो, पर वक्ष में धड़कन धडकाओ?
मेरे स्वप्नों में आ आकर, तुम मेरी रातों में बस जाओ?
कर कमलों में कंगन पहनों, और पैरों में नूपुर छमकाओ,
दिवास्वप्न बनकर फिर, मेरे सूनेपन को झंकृत कर जाओ?

तुम मेरे हेतु न बिछुआ पहनो, सपनों में भी धिक्कार करो;
केवल मेरी आँखों के आँसू को; तुम ना रोको, स्वीकार करो।
मैं वह बादल हूँ; जब रोऊँगा, प्यास धरा की बुझ जाएगी,
तृषा-तृप्ति पर बिहंस-बिहंस कर, मेरा हर आँसू पी जाएगी।

१६ दिसंबर २००४

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