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होली पर रक्षाबंधन

 

शरत की कथाओं की तरह

क्लिष्ट संस्कृतमय ऋचाएँ
जगातीं हैं इष्ट के प्रति श्रद्धा का भाव-
शरत की नायिकाएँ हैं मानवी प्रेमिकाएँ
मानव सम उनमें होती है मिलन की चाह
जो नस नस में भरती प्रीति का प्रवाह

मैं चाहता हूँ उसको
शरत की कथाओं की तरह
पर उसे प्यार चाहिए
वेदों की ऋचाओं की तरह-

मैं निहारना चाहता हूँ अपलक
उसके कृष्ण-केश सुन्दर-मुख श्वेत अंग
सस्मित धवल दंतपंक्ति-
मेनका सम
जगाये जो अनंत आसक्ति-

अपने में छिपाना चाहता हूँ
उसको गुनाहों की तरह]
पर उसे प्यार चाहिए
वेदों की ऋचाओं की तरह

मैं सुनना चाहता हूँ अनवरत
जलतरंग सी झंकृत उसकी ध्वनि
कभी अवरोहित कभी आरोहित
कभी तरंगों पर मचलती
कभी अंतस में तिरोहित-

मैं थिरकना चाहता हूँ उन पर
मचलती हवाओं की तरह
उसे प्यार चाहिए
मौन वेदों की ऋचाओं की तरह-

चाहिए मुझे निशिदिवस संग
मैं छूना चाहता हूँ उसका अंग अंग
कभी कुछ कहते कभी कुछ सुनते
कभी उदास कभी खिलखिलाते
कभी रूठते कभी मनाते-

मुझे चाहिए वह रास रचातीं
गोपिकाओं की तरह
उसे प्यार चाहिए
वेदों की ऋचाओं की तरह-

मैं चाहता हूँ उसको
शरत की कथाओं की तरह
पर उसे प्यार चाहिए
वेदों की ऋचाओं की तरह


५ नवंबर २०१२

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