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भूत

कल्पना नहीं हक़ीक़त हूँ,
काया नहीं एक साया हूँ मैं,
इनसानों ने किया मुझे बदनाम,
दे दिया है 'भूत' मेरा नाम।
करता हूँ कितना मैं काम,
निकल जाता हूँ होते ही शाम।
कहते हैं भूत को होते हैं ये बुरे,
पर हिंसा, अत्याचार, बेईमानी और भ्रष्टाचार
ये किसने हैं करे?

इनसानों ने अब करना शुरू कर दिया
हम पर भी अत्याचार,
डराने का काम खुद ही करके
करने लगे हैं हमारे पेटों पर वार।
डरता हूँ अब इनसानों से
लेता हूँ अपना दिल थाम,
कहीं ये कर ना दें मेरा भी काम तमाम।

हम भूत ही सही
पर हमारा भी है एक ईमान,
डराने के अपने काम पर
देते हैं हम पूरा ध्यान।
हम ही हैं जो कराते हैं लोगों को
इस कलियुग में भी ईश्वर का ध्यान,
क्या नहीं कर रहे हम कार्य
एक महान?

9 अगस्त 2007

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