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ट्रैफ़िक जाम

रोज़ सुबह हो या शाम
चौराहों पे दिखाई देता है ट्रैफ़िक जाम।
किसी को हँसाती तो किसी को रुलाती है,
जो खाली हैं उनका समय व्यतीत कराती है,
काम पे जाने वाला लेता है तब ईश्वर का नाम,
देख लेता है जब वो ट्रैफ़िक जाम।

कोई है सूट-बूट में तो कोई है फटेहाल,
कोई है पैदल तो कोई है गाड़ी में सवार,
बस में खड़ा है मध्यवर्गीय,
कैसा है इस ट्रैफ़िक का बुरा हाल।

फैले हुए है दो हाथ अंतर बस इतना है,
एक की आँखों में दीनता
तो दूजा गौरव से भरपूर है,
दोनों के गालों पे हैं पानी की कुछ बूँदें,
एक सुखा रहा है चला कर ए.सी.
तो मिटा रहा है इसे कोई खा कर रूखी सूखी,
अरे भाई आखिर कब ख़त्म होगा ये ट्रैफ़िक जाम।

एक और दृश्य दिखाई पड़ रहा है,
लगता तो कोई  मजनूँ का भाई है और लैला,
ओफ़! इस ट्रैफ़िक जाम को क्या अभी ख़त्म होना था?
वो हसीन समां अब पीछे छूट गया था।

9 अगस्त 2007

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