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चेहरे पर चेहरा

मुखौटा पहन अपनी पहचान छिपाए हुए है
आज का इंसान चेहरे पर चेहरा लगाए हुए है।

समेट अपने अंदर दुखों का समंदर,
चेहरे पर हँसी चिपकाए हुए है
आज का इंसान चेहरे पर चेहरा लगाए हुए है।

वास्तविकता का सामना करने से घबराए हुए है,
चेहरे पर पड़ी झुर्रियों को, मेकअप में छिपाए हुए है
आज का इंसान चेहरे पर चेहरा लगाए हुए है।

जिसे समझा था दोस्त निकला वो दुश्मन,
सच्चाई से कितनी दूरी बनाए हुए है
आज का इंसान चेहरे पर चेहरा लगाए हुए है।

हक़ीक़त से दूर भ्रम की आदत बनाए हुए है,
दिखावे के लोभ में अपनों को ही सताए हुए है,
आज का इंसान चेहरे पर चेहरा लगाए हुए है।

खुद ही को धोखा देकर,
खुश रहने के सपने सजाए हुए है
आज का इंसान चेहरे पर चेहरा लगाए हुए है।

चेहरे पर चिपके इस चेहरे को देखकर
सोचता है 'अमित' ये मन-
क्यों कोमल संवेदनाओं के मोल पर
मशीनी हो रहा है इंसान?
आधुनिकता की इस दौड़ में,
अकेला ही तो रह गया है वो,
जाने क्या चाहता है
आज का ये इंसान?

9 अगस्त 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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