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अनुभूति में दिनेश ठाकुर की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
कुर्बतें खो गईं
काश ख़्वाबों में कभी
सुकूँ के सब वसीले
रूठ गया जाने क्यों हम से

अंजुमन में-
आईने से
आँगन का ये साया
ज़ख्म़ी होठों पे
जाने दिल में
गम मेरा
ढलती शाम है
तू जबसे मेरी
थक कर
दूर तक
नई हैं हवाएँ
बदन पत्थरों के
मुकद्दर के ऐसे इशारे
मुद्दतों बाद
रूहों को तस्कीन नहीं
शीशे से क्या मिलकर आए
सुरीली ग़ज़ल
हम जितने मशहूर
हम दीवाने
हर तरफ़

हो अनजान

  आईने से

आईने से कब तलक तुम अपना दिल बहलाओगे
छाएँगे जब-जब अंधेरे ख़ुद को तन्हा पाओगे।

हर हसीं मंज़र से यारों फ़ासले क़ायम रखो
चाँद गर धरती पे उतरा देखकर डर जाओगे।

आरज़ू, अरमान, ख्व़ाहिश, जुस्तजू, वादे, वफ़ा
दिल लगाकर तुम ज़माने भर के धोखे खाओगे।

आजकल फूलों के बदले संग की सौग़ात है
घर से निकलोगे सलामत, जख्म़ लेकर आओगे।

ज़िंद़गी के चंद लम्हे ख़ुद की ख़ातिर भी रखो
भीड़ में ज़्यादा रहे तो ख़ुद भी गुम हो जाओगे।

हाले-दिल हमसे न पूछो दोस्तों रहने भी दो
इस तकल्लुफ़ में तो तुम अपने चलन से पाओगे।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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