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अनुभूति में दिनेश ठाकुर की रचनाएँ-

अंजुमन में-
आईने से
आँगन का ये साया
ज़ख्म़ी होठों पे
जाने दिल में
गम मेरा
ढलती शाम है
तू जबसे मेरी
थक कर
दूर तक
नई हैं हवाएँ
बदन पत्थरों के
मुकद्दर के ऐसे इशारे
मुद्दतों बाद
रूहों को तस्कीन नहीं
शीशे से क्या मिलकर आए
सुरीली ग़ज़ल
हम जितने मशहूर
हम दीवाने
हर तरफ़

हो अनजान

 

जाने दिल में

जाने दिल में क्या डर है
उसकी जेब में खंजर है

बारिश बाहर-बाहर है
आग तो मेरे अंदर है

एक झरोखे के पीछे
यारो एक समंदर है

तनहा हूँ पर लगता है
मेरे साथ भी लश्कर है

तेरे साथी धन वाले
मेरे साथ कलंदर है

पूछ रही है फ़स्ले-गुल
कहाँ वो तेरा दिलबर है

है इक लम्बा-सा सहरा
उसके बाद समंदर है

नाप ज़रा गहराई भी
गर तू मुझसे बेहतर है

३१ अगस्त २००९

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