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अनुभूति में दिनेश ठाकुर की रचनाएँ-

अंजुमन में-
आईने से
आँगन का ये साया
ज़ख्म़ी होठों पे
जाने दिल में
गम मेरा
ढलती शाम है
तू जबसे मेरी
थक कर
दूर तक
नई हैं हवाएँ
बदन पत्थरों के
मुकद्दर के ऐसे इशारे
मुद्दतों बाद
रूहों को तस्कीन नहीं
शीशे से क्या मिलकर आए
सुरीली ग़ज़ल
हम जितने मशहूर
हम दीवाने
हर तरफ़

हो अनजान

  हो अनजान

हो अनजान गम से, बशर कौन-सा है
गली कौन-सी है, वो घर कौन-सा है।

रहे उम्रभर हम तो यारों सफ़र में
न पूछो हमारा नगर कौन-सा है।

जो कुर्बत का अहसास हो तो बताऊँ
सफ़र में मेरा हमसफ़र कौन-सा है।

गया तू तो मौसम ठहर-सा गया था
इधर तो वही है, उधर कौन-सा है।

कभी इक नज़र का, कभी दुनिया भर का
न टूटा हो हम पर क़हर कौन-सा है।

न भर आएँ आँखें, ना दिल में हो हलचल
वो फ़न कौन-सा है, हुनर कौन-सा है।

मेरी आँख में ख्वाब है आशियाँ का
बताओ तो अच्छा शजर कौन-सा है।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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