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अनुभूति में दिनेश ठाकुर की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
ढलती शाम है
तू जबसे मेरी
मुकद्दर के ऐसे इशारे
मुद्दतों बाद
हम जितने मशहूर
हो अनजान

अंजुमन में-
आईने से
आँगन का ये साया
ज़ख्म़ी होठों पे
जाने दिल में
गम मेरा
थक कर
दूर तक
नई हैं हवाएँ
बदन पत्थरों के
रूहों को तस्कीन नहीं
शीशे से क्या मिलकर आए
सुरीली ग़ज़ल
हम दीवाने
हर तरफ़

  दूर तक

दूर तक फैले हुए सहरा का मंज़र देखना
और फिर नज़दीक आकर मेरे अंदर देखना।

उस मकां की खिड़कियाँ क्यों कुछ दिनों से बंद हैं
उस मकां की सिम्त लोगों तुम बराबर देखना।

आज सबकी ठोकरों में हैं मगर कुछ ग़म नहीं
देवता हो जाएँगे कल तक ये पत्थर देखना।

हश्र तक ज़िंदा रहे तेरा चलन अहले-जहाँ
ग़मजदों की स्मित तेरा मुस्कराकार देखना।

कौन फेरे कर रहा है कू-ए-दिल में इन दिनों
एक दिन तन्हाइयों तुम उसको छूकर देखना।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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