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अनुभूति में दिनेश ठाकुर की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
ढलती शाम है
तू जबसे मेरी
मुकद्दर के ऐसे इशारे
मुद्दतों बाद
हम जितने मशहूर
हो अनजान

अंजुमन में-
आईने से
आँगन का ये साया
ज़ख्म़ी होठों पे
जाने दिल में
गम मेरा
थक कर
दूर तक
नई हैं हवाएँ
बदन पत्थरों के
रूहों को तस्कीन नहीं
शीशे से क्या मिलकर आए
सुरीली ग़ज़ल
हम दीवाने
हर तरफ़

  बदन पत्थरों के

बदन पत्थरों के, ज़ुबाँ पत्थरों की
ख़ुली है शहर में दुकां पत्थरों की।

ख़ुदा जाने कैसे बसर अपनी होगी
सभी सूरत हैं यहाँ पत्थरों की।

ये शीशे का पैकर हटा रास्ते से
बड़ी सख़्त होती है जहाँ जां पत्थरों की।

पुकारोगे 'सिम सिम' तो दर इक खुलेगा
मगर होगी बारिश वहाँ पत्थरों की।

जिसे सब ठिकाने पता हैं हमारे
हुई है वही राजदां पत्थरों की।

ज़रा मेरी जानिब मुहब्बत उछालो
मुझे आरज़ू है जवां पत्थरों की।

मैं कल आईने से गले मिलके रोया
छलक आई बाहर ख़िजां पत्थरों की।

मेरे पास आकर मेरे ज़ख़्म पढ़िए
लिखी है यहीं दास्तां पत्थरों की।

मैं दिल्ली में फूलों के घर ढूँढ़ता था
मिली राजधानी मियां पत्थरों की।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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