अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में दिनेश ठाकुर की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
ढलती शाम है
तू जबसे मेरी
मुकद्दर के ऐसे इशारे
मुद्दतों बाद
हम जितने मशहूर
हो अनजान

अंजुमन में-
आईने से
आँगन का ये साया
ज़ख्म़ी होठों पे
जाने दिल में
गम मेरा
थक कर
दूर तक
नई हैं हवाएँ
बदन पत्थरों के
रूहों को तस्कीन नहीं
शीशे से क्या मिलकर आए
सुरीली ग़ज़ल
हम दीवाने
हर तरफ़

  ढलती शाम है

ढलती शाम है, रस्ता लम्बा
मुझसे मेरा साया लम्बा।

खेल हँसी का पल दो पल है
अलम का आलम खासा लम्बा।

कुछ उसको फुर्सत भी कम थी
कुछ था मेरा क़िस्सा लम्बा।

दुःख की तितली के पंखों पर
बाँधो सुख का धागा लम्बा।

खुल-खुल जाता है पहलू में
यादों का शीराज़ा लम्बा।

ढूँढ़ रहे हैं आँसू मेरे
बहने को इक दरिया लम्बा।

दिल में चाँद चमक उठता है
जब-जब तुझको सोचा लम्बा।

घूम रहा है कौन महल में
हाथ में लेकर शीशा लम्बा।

अपने काँटों के बिस्तर से
बेदारी का रिश्ता लम्बा।

निकल पड़े हैं हम भी घर से
सर में रखकर सौदा लम्बा।

८ फरवरी २०१०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter