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अनुभूति में दिनेश ठाकुर की रचनाएँ-

अंजुमन में-
आईने से
आँगन का ये साया
ज़ख्म़ी होठों पे
जाने दिल में
गम मेरा
ढलती शाम है
तू जबसे मेरी
थक कर
दूर तक
नई हैं हवाएँ
बदन पत्थरों के
मुकद्दर के ऐसे इशारे
मुद्दतों बाद
रूहों को तस्कीन नहीं
शीशे से क्या मिलकर आए
सुरीली ग़ज़ल
हम जितने मशहूर
हम दीवाने
हर तरफ़

हो अनजान

  थक कर

थककर और किधर जाऊँगा
शाम ढलेगी, घर आऊँगा।

प्यास लबों पर रहने भी दो
प्यास बुझी तो मर जाऊँगा।

आज भले सूखा जोहड़ हूँ
बारिश होगी, भर जाऊँगा।

धुंधला हूँ, बेनूर नहीं मैं
रातें रौशन कर जाऊँगा।

तेरे दर से उम्मीदें हैं
जो देगा, लेकर जाऊँगा।

ख़ुशबू पर हक़ अपना भी है
गुल, तुझको छूकर जाऊँगा।

सन्नाटे में दम घुटता है
कमरे से बाहर जाऊँगा।

ज़ादे-सफ़र का बंदोबस्त है
ख़ाली हाथ मगर जाऊँगा।

मेरे हाल पे हँसने वाले
रोएगा, जो मर जाऊँगा।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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