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अनुभूति में दिनेश ठाकुर की रचनाएँ-

अंजुमन में-
आईने से
आँगन का ये साया
ज़ख्म़ी होठों पे
जाने दिल में
गम मेरा
ढलती शाम है
तू जबसे मेरी
थक कर
दूर तक
नई हैं हवाएँ
बदन पत्थरों के
मुकद्दर के ऐसे इशारे
मुद्दतों बाद
रूहों को तस्कीन नहीं
शीशे से क्या मिलकर आए
सुरीली ग़ज़ल
हम जितने मशहूर
हम दीवाने
हर तरफ़

हो अनजान

  सुरीली ग़ज़ल

नदी इक सुरीली ग़ज़ल गा रही है
समंदर की जानिब बही जा रही है।

तमन्ना के दर, ख़्वाहिशों के दरीचे
हर इक शै से तेरी सदा आ रही है।

तू आब्रे-करम बनके मुझपे बरस जा
अज़ल से हविस मुझको झुलसा रही है।

बुलंदी पे उफ़्तादियाँ घेर लेंगी
ज़मी सबको सदियों से समझा रही है।

जबीं पर चमकतीं पसीने की बूँदें
तफ़्क्कुर पे गोया घटा छा रही है।

मैं इंजील जैसा मुक़द्दस नहीं हूं
मुझे खोलकर क्या पढ़े जा रही है।

कोई बेस्तूं हो मेरे वास्ते भी
मेरे दिल पे भी आरज़ू छा रही है।

मोहब्बत की अब इंतिहा हो न जाए
ग़मों से खुशी की महक आ रही है।

ये लरज़िश-सी क्या है ख़ुदा मेरे दिल में
कली गोया कोई खिली जा रही है।

कफ़स में कलम है न है रोशनाई
ग़ज़ल आँसुओं से लिखी जा रही है।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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