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						 तारीख 
						बदले  | 
                      
                        शुभ कामनाएँ |  
                    
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						111 
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नित बदलते वक़्त की  
तारीख बदले रंग बदले  
देखकर घर बार बूढ़ा  
नियत बदले ढंग बदले। 
 
चित्र जीवन के सभी  
रंगीन ढाँचे में जड़े हैं  
आईने विश्वास के 
चटके हुए बेघर पड़े हैं।  
 
सत्य से भटकाव पाकर 
साज बदले चंग बदले।  
 
हर तरफ, बस है दिखावा  
छल कपट सी बोलियाँ हैं  
औपचारिक इस शहर में  
यंत्र चीखें, गोलियाँ हैं  
 
जोश के आवेग में ज्यों  
स्वर बदले, संग बदले। 
 
एक अंधी दौड़ जिसके  
लक्ष्य का दुर्लभ ठिकाना  
दिग्भ्रमित भटकाव मारे  
जीत मुश्किल, अंत पाना  
 
सत्य चिंतन, भाव संयम 
शब्द बदले, व्यंग्य बदले।  
 
- शशि पुरवार | 
                      
              
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सब सुखी हों स्वस्थ हों  
उत्कर्ष पाएँ 
गीत खुशियों के सदा ही  
गुनगुनाएँ 
हैं यही नववर्ष की  
शुभ कामनाएँ 
 
अब न भूखा एक भी जन  
देश में हो 
अब न कोई मन कहीं भी  
क्लेश में हो 
अब न जीवन को हरे  
बेरोजगारी 
अब न कोई फैसला  
आवेश में हो 
हम नई कोशिश चलो  
कुछ कर दिखाएँ 
 
धर्म के उन्माद का  
ना हो अँधेरा 
दूर ले जाए कहीं  
हिंसा बसेरा 
हो तनिक ना जातिगत  
विद्वेष का विष 
फिर उगे विश्वास का  
नूतन सवेरा 
हों सुगंधित प्यार से  
सारी दिशाएँ 
 
- योगेन्द्र वर्मा व्योम |  
                    
                      | 
                        						 
												
												 रीत गया कैलेण्डर  | 
                      
                        						 
												 क्या 
												नया है  | 
                      			 
                    
                      | 
                        						  | 
                      
              
अच्छे दिन के इंतज़ार में  
रोज निकलता दिनकर  
उँगली पर तारीखें गिनते  
रीत गया कैलेण्डर 
1 
फिर बैठक की दीवारों पर  
नया साल लटकेगा  
फिर सड़कों पर लक्ष्य ढूँढता 
स्वप्न युवा भटकेगा 
1 
आस नयी बाँचेगी फिर से  
विज्ञापन छुप छुप कर 
1 
जोड़ घटाना गुणा भाग से  
अंकगणित उलझेगा  
बढे बजट का भार अंत में  
राशन पर उतरेगा 
1 
कतर ब्योंत बिजली के बिल में  
ठिठुरेंगे बिन हीटर 
1 
- संध्या सिंह | 
                      
              
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क्या नया है? बोलिए  
अख़बार में हम क्या पढ़ें  
 
कुछ डरी, कुछ जल मरी  
होंगी, नवेली डोलियाँ  
कुछ मजूरों पर चली  
होंगी पुलिस की गोलियाँ  
तस्करों के साथ कुछ  
अफ़सर घिरे होंगे बड़े 
 
खलबली सी मच गयी  
होगी विदेशी, तोप में  
देश का मुखिया घिरा  
होगा, नये आरोप में  
फिर कहीं फुफकारते  
होंगे कुढ़े अफ़सर बड़े  
 
चोरियाँ, डाके, धमाके  
बम के, हड़ताल के  
मुँह कुछ काले हुए  
होंगे, सफेदीलाल के  
मुख्यपृष्ठों पर खबर  
होगी, कि सौ घायल पड़े  
 
- कृष्ण भारतीय  |  
                     
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      	नव वर्ष अभिनंदन 
                                    प्रिय 
		पाठकों, १ जनवरी से अनुभूति अपने सोलहवें वर्ष में प्रवेश कर रही है। आप 
		सभी का अभिनंदन 
                           और नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएँ। - 
                           
                           
                           टीम अनुभूति  | 
                          
                        
                        | 
                      
                    
                                      
					
					गीतों में- 
					
					छंदों में- 
					
					अंजुमन में- 
					
					छंदमुक्त में- 
					
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