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पत्र व्यवहार का पता

  १३. ६. २०११

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गुजरती रही जिन्‍दगी
 

 

गुजरती रही
जिन्‍दगी धीरे-धीरे

न सुर ही सधे
राग आसावरी के,
न चलना हुआ
साथ लय बावरी के,

भटकती हुई
दर्द की घाटियों में
कि बजती रही
बाँसुरी धीरे-धीरे

अँधेरों से जिसके
लिये वैर ठाना,
उजालों में उसने
न जाना, न माना,

अगर टूटती
शोर सुनता जमाना,
बिखरती रही
चाँदनी धीरे-धीरे

कहाते थे जो
आचमन-अर्ध्‍य वाले,
सिराते रहे
नेह के सब हवाले,

लिये पीठ पर
शव, दिये, फूल, अक्षत
कि बहती रही
इक नदी धीरे-धीरे

-अमृत खरे

इस सप्ताह

गीतों में-

अंजुमन में-

छंदमुक्त में-

लंबी कविता में-

पुनर्पाठ में-

पिछले सप्ताह
६ जून २०११ के अंक में

गीतों में-
आचार्य संजीव सलिल, चंदन, किशोर काबरा, कुमार रवीन्द्र, पं. गिरिमोहन गुरु, ठाकुर प्रसाद सिंह, प्रेम शंकर रघुवंशी, भारतेंदु मिश्र, योगेश समदर्शी, डॉ. राजेन्द्र गौतम और शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

छंदमुक्त में-
कुंजन आचार्य, कविता गौड़, केदारनाथ सिंह, नवीन चतुर्वेदी, डॉ. निर्मल शर्मा, फाल्गुनी, डॉ. रूपचंद्र शास्त्री मयंक, संजय चतुर्वेदी, साधना राय

ग़ज़लों में-
राजगोपाल सिंह, सजीवन मयंक, सिद्धनाथ सिंह

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
 
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