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कोई चक्का जाम न था
फ़िज़ा में लाल सलाम न था
सब आ रहे थे जा रहे थे
भीड़ को बना रहे थे
क्या भीड़ में पिसना कोई काम न था?
किधर खुशहाली बढ़ी है
अख़बारों में रेडियो पर या दूरदर्शन पर
बदहाली वैसी की वैसी है
जो कल था वही आज है
वही खस्ता-सा समाज है
चरमराते लोग
किस किस राजनेता को टोकेंगे
कहाँ-कहाँ रिश्वत को रोकेंगे
तुम्हारे ख़यालों में कोई आराम न था
गूंगी बरी राजकुमारी लेटी थी शय्या पर
शोर ने आकुल कर दिया
जाग गई उठ बैठी
अब तबला पीट रही है
और भाई मेरे
राग दरबारी गा रहे हैं
व्यवस्था का प्रश्न है
हर कंस यहाँ कृष्ण है
अपने ही शेषनाग
अपने ही नाच
किस्सा कुर्सी का
जो प्रतिदिन महँगी होती जा रही है
क्या पहले भी ऐसा संग्राम न था?
महाभारत है गीता है
हर एक दूसरे का खून पीता है
धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र जगह-जगह बन गए हैं
राजनीति हर बिल में घुस आई है
दुहाई है दुहाई है
पगले तू ही हरजाई है।
तेरे पास न शस्त्र है न विद्या है न माया है
तू अछूता है
बस कविता करता है
और हर दिन अपनी मौत मरता है
तेरी किस्मत में क्या जीना हराम न था
हे राम, हरे राम, राम राम

९ जून २००६

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