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बारिशों में
शहर |
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शहर में फिर बारिशें हैं
रुक नहीं सकता है दिन पर
चल पड़े सब
आसमानों में अँधेरा
औ सड़क पर लाइटें हैं
समय है दिन का मगर
आभास देता रात का है
बारिशों ने थाम रक्खी गति
शहर पर कब थमा है
बारिशों के नियम है
उनको समय से बरसना है
शहर की जिद है
कि उसको सुबह उठकर दौडना है
बारिशों में भीगना है
अब नहीं उसको पता है
धुँध है, परछाइयाँ हैं कौन देखे
हवा की शहनाइयाँ हैं कौन जाने
बंद कारों में सभी के राग अपने
चल पड़े सब
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- पूर्णिमा वर्मन |
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इस माह
(वर्षा विशेषांक)
छंदमुक्त में-
हाइकु में-
दोहों में-
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